रिपोर्ट- डॉ संजय तिवारी
बाराबंकी । सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री लोधेश्वर महादेवा महाशिवरात्रि को लेकर मेला परिसर में दुकाने सजने व संवरने लगी है। प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी अभी चुप्पी साधे हुए हैं। पूरे परिसर में स्वच्छता अभियान की धज्जियां उड़ती देखी जा सकती है। श्री महाशिवरात्रि को लेकर प्रशासन की उदासीनता को देख क्षेत्र के लोगों में काफी आक्रोश व्याप्त है। बताते चलें कि श्री लोधेश्वर महादेवा में फाल्गुनी महीने में लगने वाले इस मेले का एक विशेष अलग महत्व है। इस मेले में देश के कई जनपदों के लोग कांवर लेकर नंगे पांव पैदल चलकर श्री लोधेश्वर धाम आते हैं। बाण हन्या व अभरण सरोवर में स्नान कर श्री लोधेश्वर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। लेकिन अभरण सरोवर में काफी गंदगी फैली हुई है। बताते हैं कि अज्ञातवास के बाद पांडव जब यहां आए थे तो उनके गुरु ऋषि याज्ञवल्ल ने संकट से मुक्ति पाने के लिए रूद्र महायज्ञ अनुष्ठान करने की प्रेरणा दी। गुरु के आदेश का पालन करते हुए पांडवों ने श्री लोधेश्वर महादेवा से कुछ दूरी पर स्थित कुला क्षत्र नामक स्थान पर रुद्र महायज्ञ का आयोजन किया। शिवलिंग लाने की जिम्मेदारी भीम को दी गई। शिवलिंग लाते वक्त रास्ते में कुछ दिक्कतें आई तो भीम ने दूसरा उसी भार का शिवलिंग खोज बहंगी बनाकर यज्ञ स्थल तक लाए। जब गुरु ने एक समान दो शिवलिंग देखा तो एक को यज्ञ स्थल पर युधिष्ठिर के हाथों तथा दूसरा कुछ दूरी किंतूर नामक स्थान पर कुंती के हाथों स्थापित करवा दिया। घाघरा नदी का बाढ़ क्षेत्र होने के कारण मिट्टी व बालू से शिवलिंग पट गया। धीरे धीरे घाघरा नदी उत्तर दिशा की ओर बढ़ती चली गई,लोग इस नदी द्वारा छोड़े.स्थान पर घर बना कर रहने एवं खेती करने लगे। बताते हैं कि एक दिन लोधे राम अवस्थी अपने खेत में सिंचाई के लिए गड्ढा खोद रहे थे तो उनका फावड़ा वजनदार वस्तु से टकरा गया एवं फावड़े में खून लग गया। खून देखकर वह घबरा गए। मिट्टी हटाकर देखा तो शिवलिंग के दर्शन हुए उन्होंने इस स्थान से हटाने का बड़ा प्रयास किया लेकिन हटा नहीं पाए। वहीं पर कुटिया बनाकर रहने लगे व शिवलिंग का पूजन अर्चन करने लगे। भगवान शिव ने उनकी पूजा पर प्रसन्न होकर दर्शन दिया तबसे यह शिवलिंग श्री लोधेश्वर महादेव नाम से देश के कोने कोने में विख्यात हो गया। महीने के प्रत्येक सोमवार के अलावा सावन महीने एवं महाशिवरात्रि पर काफी संख्या में श्रद्धालु श्री लोधेश्वर धाम आकर जलाभिषेक करके माथा टेकते है।
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