उलझती उलझनों को इस कदर वो कैद करती है,
वो अलमारी में जैसे ठूंस कर कपड़ो को भरती है।
शब्द ही है नही कह दे हकीकत उलझनों की तो,
सिलवटो से भरा कपड़ा वो मन पर भी पहनती है।।
जानती है वो अलमारी भरी है उन विचारों से,
जिन्हे वो बांधकर ताले में खुद को बंद करती है।
गिरेगा ढेर कपड़ो का किवाड़े खोल दे कोई ,
वो कपड़ो में कही होकर ज़हन को ही पहनती है।।
पूछ लो हाल गर उसका तो बस खामोश रहती है,
शब्द में ही नही मिलती पहेली खुद को कहती है।
आलसी है नही पर खुद को बेहतरीन रखती है,
जो बिखरा है तो बिखरा है सहज़ा बस जिसे महसूस करती है।।
कहेगी अब नही कुछ भी वो हर दिन खुद से कहती है,
ढूंढने को कहीं खुद को वो हर दिन खुद से मरती है।
सवालों में तुम्हारे भी वो खुद की ख़ोज करती है,
वो आहटो से कही पहले आहटो को भी सहती है।।
शोभा शुक्ला सुवासित...✍️
More Stories
आत्मीयता
वीर शिरोमणि महा राणा प्रताप जयंती पर विशेष
मातृदिवस पर विशेष …