जो रेल सेवा की बात करेगा वही प्रदेश में राज करेगा।
आगामी विधानसभा चुनावों में बड़ा मुद्दा होगी मैलानी बहराइच रेल प्रखंड सेवा।
सरकार की दशा और दिशा तय करेगी मैलानी-बहराइच रेल प्रखंड सेवा।
मोतीपुर बहराइच। वैकल्पिक साधन उपलब्ध कराए बिना सरकार द्वारा रेल सेवा बंद किया जाना न केवल हाईकोर्ट के आदेशों की अवमानना है बल्कि सरकार की हठधर्मिता भी है। जिसने हाईकोर्ट के कथित आदेशों का हवाला दिया था।वह तो धन्य हैं हाईकोर्ट के विद्धान न्यायमूर्ति जिन्होंने उन कथित आदेशों को माँगकर न केवल सरकार की पोल खोल दी बल्कि उनकी नीयत को भी उजागर कर दिया है। बहराइच-मैलानी रेल प्रखंड पर जितने वन्यजीव पिछले 20 वर्षों में ट्रेन से दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं। उससे कई गुना ज्यादा वन्य जीवों की मौतें इस वन्य क्षेत्र में सड़क आवागमन द्वारा प्रतिदिन होती रहती हैं।इन क्षेत्रों में रेल मार्ग से ज्यादा सड़क मार्ग का आवागमन एवं सड़कों का जाल है तो फिर सरकार ने सड़क आवागमन को क्यों नहीं बंद किया।क्या भविष्य में सरकार सड़क आवागमन को भी बंद करेगी क्योंकि सड़कों का जाल तो रेलवे के मार्ग से कई हजार गुना ज्यादा है। इसके साथ ही सड़क मार्ग पर भी तो वन्यजीवों की मौतें अथवा दुर्घटनाएं होती हैं। रेल सेवा के बंद होने पर पक्ष-विपक्ष के क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों तथा सांसदो-विधायकों आदि को जनता इस विधानसभा चुनाव में सबक सिखाने को तैयार बैठी है।क्योंकि विभिन्न राजनीतिक दलों के जनप्रतिनिधियों के पदासीन रहते ही सैकड़ों साल से अधिक पुरानी रेल सेवा पर विराम लगाया गया और वह ताकते रहे एवं विरोध के न तो एक भी स्वर उठाये और न ही प्रभावी पैरवी एवं जन आन्दोलन किया। सत्ता पक्ष से ज्यादा विपक्ष की उदासीन भूमिका भी एक बड़ा सवाल उत्पन्न करती है।जिस रेल सेवा को पाने के लिए पड़ोसी जनपद श्रावस्ती के लोगों को सैकड़ों साल से अधिक इंतजार करना पड़ा जिसके बाद उन्हें रेल सेवा लंबे संघर्षों के बाद मिली है। वहीं हमारे पूर्वजों द्वारा सवा सौ साल पहले कमाई गयी इस जीवन दायिनी को क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों को विस्तार न दिलाकर बंद ही करा दिया गया। जिससे क्षेत्रवासियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।*इस रेल सेवा के बंद होने में इन जनप्रतिनिधियों का सर्वाधिक योगदान रहा है क्योंकि इनकी उदासीनता की वजह से ही केन्द्र सरकार ने रेल-सेवा को छीनकर क्षेत्र को ढाई सौ साल पीछे छोड़ दिया है।* यदि इन जनप्रतिनिधियों ने किंचित मात्र भी यह चाहा होता कि यह रेल सेवा बरकरार रहे तो वह सरकार के समक्ष प्रभावी पैरवी करते यदि सरकार उनकी बातों को न सुनती तो हाईकोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते और इस्तीफा देकर जनता के इस दुःख दर्द में शामिल कर जनान्दोलन करते।*वैसे भी रेल प्रशासन रेलवे ट्रैक अथवा रेल भूमि पर पर यदि कोई अतिक्रमण करता है तो उस पर मुकदमा दर्ज करवा देता है। फिर जब रेल मार्ग रेलवे की भूमि पर बना हुआ है तो रेल प्रशासन ने वन विभाग पर इस बात का मुकदमा क्यों नहीं किया कि वन विभाग के जीव-जन्तु उसके ट्रैक एवं उसकी भूमि पर आकर अतिक्रमण क्यों करते हैं एवं वन विभाग अपने जानवरों को रेलवे ट्रैक पर आने से क्यों नहीं रोकता है।*जनता के इतने बड़े नुकसान के बाद भी क्या जनप्रतिनिधियों को अपने पद पर बने रहने का हक है या अगर उनमें जरा भी शर्म है तो क्या वह स्वयं अपने पद से इस्तीफा देकर सरकार के इस जनविरोधी निर्णय के खिलाफ जनता के खाये हुए नमक का हक अदा करेंगे अन्यथा की स्थिति में आगामी विधानसभा चुनावों में यह भी एक बड़ा मुद्दा बनने वाला है।जिससे मैलानी से लेकर गोंडा तक की विधानसभा सीटों के नतीजे निश्चित रूप से अवश्य प्रभावित होंगे। गोंडा से लेकर मैलानी तक की क्षेत्रीय जनता आगामी विधानसभा चुनावों में रेल सेवा को लेकर पक्ष विपक्ष समेत सभी राजनीतिक दलों के राजनेताओं चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों तथा उनकी पार्टियों से इस बात का जवाब अवश्य लेगी।*बंद ट्रेनों के संचालन बहाल किए जाने की मांग हुई तेज।*गोंडा-मैलानी प्रखंड पूर्वोत्तर रेलवे का प्राचीनतम रेलमार्ग है।जिस पर 1894 से छोटी लाइन की ट्रेनों का संचालन किया जा रहा है।इस रूट पर गोंडा, बस्ती, बलरामपुर, बाराबंकी, लखनऊ, कानपुर, गोरखपुर, देवरिया, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मैलानी,बरेली, पीलीभीत,हरिद्वार, नैनीताल,नई दिल्ली, मुंबई आदि स्थानों के लिए प्रतिदिन बडी संख्या में लोग यात्रा करते थे।इस रूट पर ट्रेनों की आवाजाही से इस मार्ग पर पड़ने वाले स्टेशनों पर काफी चहल-पहल एवं रौनक बनी रहती थी।इस प्रखंड पर 6 अप एवं 6 डाउन कुल मिलाकर दिन भर में 12 ट्रेनें आती-जाती थी। जिससे रेलवे को काफी आय भी अर्जित होती थी। मिनी पूर्वांचल के नाम से मशहूर जनपद बहराइच की सबसे बड़ी तहसील मुख्यालय मिहींपुरवा (मोतीपुर) में स्थित मिहींपुरवा रेलवे स्टेशन से हजारों की संख्या में रेलयात्री प्रतिदिन लंबी दूरी की यात्रा करते थे।पिछड़ा क्षेत्र होने के कारण यहां के छात्र-छात्राएं अपनी स्नातक एवं उसके आगे की पढ़ाई के लिए बहराइच रिसिया एवं नानपारा पयागपुर स्थित डिग्री कॉलेजों, आईटीआई कॉलेजों, पॉलिटेक्निक कॉलेज एवं अन्य शैक्षिक संस्थानों में पढ़ने के लिए प्रतिदिन ट्रेनों से आया जाया करते थे। विभिन्न सरकारी दफ्तरों में नौकरी करने वाले एवं तहसील तथा जिला न्यायालयों में प्रैक्टिस करने वाले वकील भी इसी ट्रेन से आते जाते थे।बिछिया, निशान गाढ़ा, मुर्तिहा, ककरहा, मिहींपुरवा, रायबोझा, नानपारा, मटेरा, रिसिया, बहराइच, चिलवरिया, पयागपुर,विशेश्वरगंज, योगेंद्र धाम, गंगा धाम,इत्यादि स्टेशनों के यात्रियों के लिए इस रूट की ट्रेनें जीवनदायिनी एवं किसी वरदान से कम नहीं थी।*आमान परिवर्तन के नाम पर बंद की गई थी ट्रेनें।* इस प्रखण्ड पर काफी समय से बड़ी लाइन की ट्रेनों को चलाये जाने की मांग की जा रही थी।कई बार संसद में मामला उठने के बाद केंद्र सरकार द्वारा इस लाइन को बड़ी लाइन के रूप में परिवर्तित करने के लिए हरी झंडी दी गई।जिससे क्षेत्र वासियों में काफी हर्ष एवं खुशी की लहर दौड़ गई।प्रथम चरण में बहराइच से गोंडा के बीच बड़ी लाइन की ट्रेनों को हरी झंडी दी गई थी। जिसके लिए आमान परिवर्तन करने हेतु छोटी लाइन की ट्रेनों को बंद किया गया था।इस रूट की ट्रेनों को आमान परिवर्तन के कारण बंद किए जाने पर क्षेत्रीय जनता ने इसका विरोध भी नहीं किया।लोगों को यह उम्मीद थी कि आमान परिवर्तन हो जाने पर उन्हें बड़ी लाइन की ट्रेनों का सफर करने का अवसर मिलेगा। जिससे वे लंबी दूरी की ट्रेनों की यात्रा सुगमता से कर सकेंगे।आमान परिवर्तन हो जाने के बाद भी रेलवे द्वारा न तो लंबी दूरी की ट्रेनें चलाई गई और न ही बंद की गई ट्रेनों को पुनः बहाल किया गया।जिससे लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।इस बीच प्राइवेट बसों द्वारा यात्रियों को बसों में जानवरों की तरह भरकर सफर करने पर मजबूर किया जा रहा है तथा उलूल-जुलूल किराया भी लिया जाता है। आए दिन बस यूनियन द्वारा किराया बढ़ा दिया जाता है तथा यात्रियों से बदसलूकी भी की जाती है। जिससे आए दिन सड़क मार्ग एवं बसों में होने वाली दुर्घटनाएं लोगों के लिए काफी परेशानी का सबब बनती जा रही हैं।बहराइच-मैलानी रेल सेवा लोगों के बीच बडा मुद्दा बनती जा रही है।
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