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एकजुट होकर लोक संस्कृतियों को संरक्षित करने की है जरुरत – प्रो0 रामपुनियानी

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फाजिलनगर के जोगिया जनूबीपट्टी मे दो दिवसीय लोकरंग महोत्सव के दुसरे दिन आयोजित संगोष्ठी

रिपोर्ट-अमित मिश्रा

कुशीनगर । एक संगठित गिरोह द्वारा भारत की लोक संस्कृतियों को योजनाबद्ध तरीके से नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि राजसत्ता पर बरकरार रहा जाए।यह कहना है लेखक व समाजिक कार्यकर्ता प्रो. रामपुनियानी की। वह जनपद के फाजिलनगर क्षेत्र के जोगिया जनूबीपट्टी मे दो दिवसीय लोकरंग महोत्सव के दुसरे दिन आयोजित संगोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि इन शक्तियों के खिलाफ एकजुट होकर अपनी लोक संस्कृतियों को संरक्षित किया जाए। लोक संस्कृति और लोक परंपराएं जन जागरुकता का सशक्त माध्यम हैं। इन्हें संरक्षित रखकर ही हम समाज का भला कर सकते हैं।इसी कडी मे लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी के प्रो. सूरज बहादुर थापा ने कहा कि भारत की संस्कृति लोक की संस्कृति है, लेकिन धर्म सत्ता और राज सत्ता के लिए मुठ्ठी भर लोग इसे अपने अनुसार परिभाषित कर इसे विखंडित करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा यह लोग लोक का विरोध लोक से ही कराने का प्रयास करते हैं। इसके लिए जन जागरण आवश्यक है। रीवा विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. दिनेश कुशवाहा ने कहा कि लोक संस्कृतियों व धर्मों के नाम पर लोक को गुमराह करने की कोशिश किया गया। यहां तक कि गीता में यह उपदेश है कि केवल कर्म करें, फल की चिंता न करें। अर्थात आप मजदूरी तो करें, लेकिन मेहनताना न मांगें। संगोष्ठी को प्रो. संजय कुमार, बीआर विप्लवी, डॉ. रामप्रकाश कुशवाहा, प्रो. मोतीलाल, डॉ. रतन लाल, मनोज कुमार सिंह आदि ने संबोधित किया। संगोष्ठी की अध्यक्षता बीएचयू के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. चौथीराम तथा संचालन रामजी यादव ने किया। लोकरंग के आयोजक सुभाषचंद कुशवाहा ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया।

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