ब्यूरो रिपोर्ट- डॉ संजय तिवारी
साफ संदेश- बाराबंकी
जब-जब असुरों के अत्याचार बढ़े हैं और धर्म का पतन हुआ है, तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। इसी कड़ी में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया था।
हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि द्वापर युग में इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने धरती पर देवकी नंदन के रूप में जन्म लिया था। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और रात में 12 बजे श्रीकृष्ण के जन्म के समय उन्हें 56 भोग अर्पित करते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन हर तरफ कान्हा के नाम की ही गूंज होती है। इस बार जन्माष्टमी का यह पर्व मथुरा के वृंदावन में 19 अगस्त और नंद गांव में 20 अगस्त को मनाया जाएगा। शास्त्रों में इस व्रत को पापों से मुक्त करने वाला व्रत बताया गया है।
- भगवान श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर जी से कहते हैं कि, “20 करोड़ एकादशी व्रतों के समान अकेला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत है।”
- धर्मराज, सावित्री से कहते हैं कि, “भारतवर्ष में रहने वाला जो कोई भी प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है, वह 100 जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भारतवर्ष में रहने वाला जो कोई भी प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है, वह सौ जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है। वह दीर्घकाल तक वैकुण्ठलोक में आनन्द भोगता है। फिर उत्तम योनि में जन्म लेने पर उसमें भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति उत्पन्न हो जाती है, यह निश्चित है। अग्निपुराण के अनुसार, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास रखकर भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करना चाहिये। यह उपवास भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला है।
भविष्यपुराण के अनुसार, माना जाता है कि जो मनुष्य कृष्ण जन्माष्टमी व्रत नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है।
स्कन्दपुराण के अनुसार कहा जाता है कि जो व्यक्ति कृष्ण जन्माष्टमी व्रत नहीं करता, वह जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। किसी विशेष कारणवश अगर कोई जन्माष्टमी व्रत रखने में समर्थ नहीं है, तो उसे किसी एक ब्राह्मण को भरपेट भोजन हाथ से खिलाना चाहिए। अगर वह भी संभव नहीं है तो ब्राह्मण को इतनी दक्षिणा दें कि वह दो समय भरपेट भोजन कर सके। अगर वह भी संभव नहीं है तो गायत्री मंत्र का हज़ार बार जप करें।
पंचांग
चार रात्रियाँ विशेष पुण्यफल प्रदान करनेवाली हैं
1.दिवाली की रात
- महाशिवरात्रि की रात
- होली की रात और
- कृष्ण जन्माष्टमी की रात
इन विशेष रात्रियों का जप, तप और जागरण बहुत-बहुत पुण्य फलदायक माना जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा जाता है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मन्त्र जपने से व्यक्ति को संसार की मोह-माया से मुक्ति मिलती है। जन्माष्टमी का व्रत ‘व्रतराज’ है। इस व्रत का पालन सच्चे मन से करने पर भगवान कृष्ण की कृपा हमेशा बनी रहती है।
- कृष्ण जन्माष्टमी की रात
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