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धान की फसल में घासो/ खरपतवारों की समस्या का निदान: कृषि विज्ञान केंद्र

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रिपोर्ट-बी.डी. पाठक

संतकबीरनगर।अचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, बगही के वैज्ञानिकों ने कृषक प्रक्षेत्रों का भ्रमण करने के दौरान पाया कि पानी (वर्षा जल) के अभाव में अनेक कृषक अभी धान की रोपाई कर रहे हैं उनको सलाह दी गई कि अबिलंब रोपाई पूर्ण कर लें।

कारण स्पष्ट है की पौध की उम्र सिस्टम ऑफ राइस इंटेंसीफिकेशन (एस आर आई- श्री) पद्धति के अंतर्गत 8 से 14 दिन, साधारण रोपण तकनीकी के अंतर्गत 15 से 21 दिन तथा ऊसर प्रभावित खेतों /प्रक्षेत्रों में 22 से 35 दिन सर्वमान्य है। इससे अधिक पौधे उम्र होने पर क्रमश: धान पौध रोपण के बाद फसल वृद्धि के दौरान कम कल्ले निकलने के कारण के कारण धान की उपज घट जाती है जबकि फसल लागत संपूर्ण लगती है। यह विचार कृषि विज्ञान केंद्र के पादप प्रजनन वैज्ञानिक डॉ रत्नाकार पाण्डेय ने व्यक्त किए।
वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ अरविंद कुमार सिंह ने प्रक्षेत्र भ्रमण के दौरान पाया कि रोपित धान में 20 दिनों के पश्चात ही अनेक खरपतवारों की समस्या है विशेषकर निचले क्षेत्रों में मोथा एवं जलकुंभी की अधिकता है इनके अतिरिक्त अन्य खरपतवारों जैसे-सांवक, मकरा, कुकरोंदा, हजारदाना,जंगली शैवाल आदि खेत में उपलब्ध पानी तथा पोषक तत्वों के अधिकांश भाग का अवशोषण कर लेते हैं जिसके फलस्वरूप फसल की वृद्धि, कल्लों की संख्या, पैदावार सहित अनाज गुणवत्ता में अत्यधिक कमी आ जाती है। प्राय: धान की फसल में रोपाई के 25 से 30 दिनों तक का समय फसल खरपतवार स्पर्धा का सर्वाधिक क्रांतिक काल होता है। वैसे खरपतवारों की सघनता व अनेक प्रकार का प्रभाव मुख्य फसल पर पड़ता है यदि इस दौरान उचित रोकथाम नहीं की जाती तो उपज में एक तिहाई तक उपज हानि सुनिश्चित है। इसी क्रम में
डॉ पांडेय ने सुझाव दिए की रोपाई वाले धान की फसल में शुरू के 20 दिनों तक खेत में 3 से 4 सेंटीमीटर पानी रखना ही बचाव है ताकि खरपतवार अंकुरण ना हो और जो खरपतवार बीज अंकुरित हो भी जाए तो उनकी बढ़वार नहीं हो। वर्तमान में श्रमिकों की कमी तथा दैनिक मजदूरी के लगातार बढ़ोतरी के कारण उचित समय पर निराई ना हो पाना भी कारण है इसलिए उचित खरपतवारनाशी का सही समय पर उन्नत तकनीकी द्वारा खरपतवार प्रबंधन करना चाहिए। संकरी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण हेतु रोपाई के तुरंत बाद बुटाक्लोर 50 ईसी (मचेटी), @250 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा प्रीटेलाक्लोर (व्यवसायिक नाम-डेलाकलोर, कैपक्लोर, पैराक्लोर)@1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर संपूर्ण खेत में छिड़काव करें। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार (जलकुंभी, तिपतिया) के नियंत्रण हेतु ऑल मिक्स (मेटसल्फ्यूरान इथाइल+क्लोरीफ्यूरान इथाइल 20 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण )@20 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के 15 से 20 दिन पश्चात से छिड़काव करें। यदि संकरी तथा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार ओं का नियंत्रण एक समय करना हो तो ऑल मिक्स@20 ग्राम+विस्पायरीबैक सोडियम साल्ट 10 ई सी (व्यापारिक नाम- नामिनी गोल्ड, ऐडारा)@250 ग्राम प्रति हेक्टेयर को 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

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