गोपियों की मनमोहक कथा में प्रेम की प्रकाष्ठा है भगवान कृष्ण एवं गोपियों का जीवन
रिपोर्ट-अजीत मिश्र
संत कबीर नगर । श्री अयोध्या धाम से पधारे ब्यास श्री विद्या पति त्रिपाठी जी ने कहा कंस के अत्याचार से पृथ्वी त्राह त्राह जब करने लगी तब लोग भगवान से गुहार लगाने लगे। तब कृष्ण अवतरित हुए। कंस को यह पता था कि उसका वध श्रीकृष्ण के हाथों ही होना निश्चित है। इसलिए उसने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण को अनेक बार मरवाने का प्रयास किया, लेकिन हर प्रयास भगवान के सामने असफल साबित होता रहा। ग्यारह वर्ष की अल्प आयु में कंस ने अपने प्रमुख अकरुर के द्वारा मल्ल युद्ध के बहाने कृष्ण, बलराम को मथुरा बुलवाकर शक्तिशाली योद्धा और पागल हाथियों से कुचलवाकर मारने का प्रयास किया, लेकिन वह सभी श्रीकृष्ण और बलराम के हाथों मारे गए और अंत में श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर मथुरा नगरी को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिला दी। कंस वध के बाद श्रीकृष्ण अपने माता-पिता वसुदेव और देवकी को जहां कारागार से मुक्त कराया, वही कंस के द्वारा अपने पिता उग्रसेन महाराज को भी बंदी बनाकर कारागार में रखा था, उन्हें भी श्रीकृष्ण ने मुक्त कराकर मथुरा के सिंहासन पर बैठाया ।*भगवान श्री कृष्ण एवं रुक्मणी के विवाह की रोचक कथा में श्री व्यास जी बताएं**श्री कृष्ण को रुक्मणी द्वारा भेजा गया संदेश**श्रीकृष्ण ने रुक्मणि का संदेश पढ़ा*- ‘हे नंद-नंदन! आपको ही पति रूप में वरण किया है। मैं आपको छोड़कर किसी अन्य पुरुष के साथ विवाह नहीं कर सकती। मेरे पिता मेरी इच्छा के विरुद्ध मेरा विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहते हैं। विवाह की तिथि भी निश्चित हो गई। मेरे कुल की रीति है कि विवाह के पूर्व होने वाली वधु को नगर के बाहर गिरिजा का दर्शन करने के लिए जाना पड़ता है। मैं भी विवाह के वस्त्रों में सज-धज कर दर्शन करने के लिए गिरिजा के मंदिर में जाऊंगी। मैं चाहती हूं, आप गिरिजा मंदिर में पहुंचकर मुझे पत्नी रूप में स्वीकार करें। यदि आप नहीं पहुंचेंगे तो मैं आप अपने प्राणों का परित्याग कर दूंगी।’कथावाचक व्यास श्री विद्यापति त्रिपाठी जी ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण और माता रुक्मणी विवाह भी बहुत रोचक परिस्थितियों में हुआ। भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे पहले रुक्मणी से ही विवाह किया था। श्रीमद्भागवत गीता में इस विवाह का वर्णन रोचक तरीके से मिलता है।कथा में विवाह की बहुत सुन्दर रूप से प्रस्तुति की गई । भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी विवाह प्रसंग श्रीमद्भागवत महापुराण में श्रीशुकदेवजी राजा परीक्षित को सुनाते हैं और यहां व्यास पीठासीन श्री विद्यापति त्रिपाठी जी कुशहरा में आयोजक श्री शेशदत्त सह पत्नी श्री मति प्रेमलता समस्त परिवार सहित क्षेत्रवासी को सुना रहे हैं बहुत ही दिव्य झांकी की प्रस्तुति की गई । श्रीमद्भागवत में इस विवाह का वर्णन रोचक तरीके से मिलता है।कथा में विवाह की बहुत सुन्दर रूप से प्रस्तुति की गई । भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी विवाह प्रसंग श्रीमद्भागवत महापुराण में श्रीशुकदेवजी राजा परीक्षित को सुनाते हैं और यहां व्यास पीठासीन श्री विद्यापति त्रिपाठी जी कुशहरा में आयोजक श्री शेशदत्त सह पत्नी श्री मति प्रेमलता समस्त परिवार सहित क्षेत्रवासी को सुना रहे हैं बहुत ही दिव्य झांकी की प्रस्तुति की गई ।*श्री त्रिपाठी जी ने बताएं वह स्थान जहां से हुआ था रुक्मिणी का हरण* श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का जिस मंदिर से हरण किया था। वह मंदिर वर्तमान में मौजूद है। इस मंदिर का नाम है ‘अवंतिका देवी मंदिर’। यह मंदिर उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर जिले में अनूपशहर तहसील के जहांगीराबाद से करीब 15 किमी. दूर गंगा नदी के तट बना हुआ है। मान्यता है कि इस मंदिर में अवंतिका देवी जिन्हें अम्बिका देवी भी कहते हैं साक्षात् प्रकट हुई थीं। मंदिर में दो मूर्तियां हैं, जिनमें बाईं तरफ मां भगवती जगदंबा की है और दूसरी दायीं तरफ सतीजी की मूर्ति है। यह दोनों मूर्तियां ‘अवंतिका देवी’ के नाम से प्रतिष्ठित हैं।महाभारत काल का यह मंदिर अहार नाम से जाना जाता था। पौराणिक धर्म ग्रंथों के मुताबिक, यहां रुक्मिणी रोजाना गंगा किनारे स्थापित अवंतिका देवी के मंदिर में पूजा करने आती थीं। इसी मंदिर के प्रांगण में श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का मिलाप हुआ था। इस तरह से श्री कृष्ण रुक्मणी का विवाह रोचक एवं संपन्न हुआ ।*आगे श्री व्यास जी ने गोपियों की मनमोहक कथा सुनाया**गोपियों की मनमोहक कथा में प्रेम की प्रकाष्ठा है भगवान कृष्ण एवं गोपियों का जीवन* निस्वार्थ प्रेम ही परमात्मा की भक्ति है जहां देना ही देना हो, लेना न हो वहां श्री राधा है प्रेम आकर्षण से नहीं संयोग से प्रारंभ होता है और जीवन के अंतिम क्षण तक उसी भाव से जीवित रहता है। प्रेम को अपने मन से जोड़कर रखना ही श्री कृष्ण की परम भक्ति है। श्री व्यास जी ने कहा कि श्रीकृष्ण के मन में गोपियों के लिए असीमित प्रेम होने के बाद भी जब न्याय की स्थिति बनती है, तो आदर्श स्थापित करने के लिए निर्मोही बनकर न्याय देते हैं। न्याय की मर्यादा मोह की सीमा के बाहर प्रारंभ होती है और दूसरी तरफ जब गोपीनाथ मधुर बांसुरी बजाते हैं तो गोपियां दौड़ते भागते उनके पास पहुंचने के लिए आतुर हो जाती हैं। प्रेम का स्वरूप भाव के बिना संभव नहीं, धीरज की समस्त गांठे प्रेम की नमी से खुल जाती हैं। प्रेम की पराकाष्ठा है राधा, समर्पण की पराकाष्ठा हैं मीरा, और इस प्रेम व समर्पण की पराकाष्ठा है श्री कृष्ण का जीवन। किसी भी भाव से कान्हा को चाहे वो उसी रूप में हमें प्राप्त होंगे। प्रेम केवल प्रसन्नता सुख आनंद ही नहीं देता प्रेम में जब वियोग आता है तब पीडा़ की भी सीमाएं दरकने लगती हैं। कथा के आयोजन में सुंदर विवाहगीत प्रस्तुति श्री व्यास जी द्वारा किया गया एवं उपस्थित श्रोता माताओं बहनों द्वारा विवाह गीत की भी प्रस्तुत की गई । पंडाल में उपस्थित सभी श्रोताओ में गोपियों के भाव में मंत्रमुग्ध हो गए , पुनः आरती ,वंदन , अर्चन हुआ । तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर श्रोता गड़ो को भोजन कराया गया ।आयोजक श्री शेषदत मिश्र सहित भाइयों में चंद्रभूषण मिश्र,कुलदीप,सुशील, एवं पुत्र गढ़ अजीत ,अनूप ,मनीष, आचार्य सर्वदेव , हिमांशु , अतुल , आयोजक पौत्र बाल वैदिक अभिषेक ,श्लोक, कश्यप, एवं समस्त परिवार , परम पूज्य संत श्री राम उजागिर दास जी, आचार्य सुरेंद्र पांडे, शास्त्री सुरेंद्र मिश्र, महराजमन्,रामशब्द, दूधनाथ, हरिराम, चंद्रप्रकाश, भूतपूर्व प्रधान पुल्लुर , आदित्य, श्रेष्ठ बुजुर्ग श्री रुद्रनाथ मिश्र, श्री लक्ष्मी नारायण शुक्ल, राधेश्याम चौधरी, ऋषभ ,धर्मेंद्र, शीतला प्रसाद तिवारी एवं अन्य श्रोतागण उपस्थित रहे इस कथा का आयोजन संत कबीर नगर ब्लॉक बेलहर के कुसहरा गांव में चल रहा है।
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