सैकड़ों किमी दूर दूसरे जनपदो से आकर वन्य क्षेत्र में दशको से अकेले रह रहे सैकड़ों शिक्षक।
साफ सुथरी छवि, स्थानीय लोगो से बेहतर तालमेल के साथ कर रहे शिक्षण कार्य।
दुर्गम क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों की सेवाओं को प्रोत्साहन की है ज़रुरत । ताकी किसी भी न टूटे मनोबल ।
बहराइच- बेरोजगारी के पायदान पर खड़े किसी युवा को लंबे संघर्ष और काफी प्रयासों के बाद जब शिक्षक भर्ती में जनपद बहराइच में चयन का शुभ समाचार मिला होगा तो निश्चित ही उसके जीवन का यह स्वर्णिम क्षण रहा होगा किंतु आकांक्षी जनपद बहराइच के सबसे पिछड़े विकासखंड मिहींपुरवा के विधालयों में ज़्यादातर हाई मेरिट के पुरूष शिक्षको की तैनाती की गयी।बीएसए कार्यालय के बाहर चस्पा विधालय आवंटित सूची से जब शिक्षको को कर्तनिया वन्यक्षेत्रों के आसपास के विधालय मिलने की जानकारी हुई तो नौकरी मिलने की प्रसन्नता के साथ साथ एक अजीब सा भय भी व्याप्त हुआ। इसके बाद उनके पास सिर्फ दो विकल्प थे। पहला तो काउंसलिंग छोड़ दूसरे जनपद में नौकरी ली जाए या दूसरा वन्य क्षेत्रों में शिक्षण कार्य को चुनौती के रूप में स्वीकार कर यहां के शिक्षा स्तर को बढ़ाया जाये। अधिकतर शिक्षक मिहींपुरवा ब्लाक में ज्वाइनिंग लेने पहुंच गये।मिहींपुरवा बीआरसी पर फाइल जमा करने के बाद शिक्षको को कतर्नियाघाट वन्य जीव विहार की सातो रेंज क्षेत्र की सीमाओ अंर्तगत स्थित विभिन्न विधालयों में ज्वाइनिंग लेना था। मिहींपुरवा बीआरसी पर उपस्थित लोगों में से कुछ ने सचेत और आगाह किया कि यह हिंसक वन्य प्राणी क्षेत्र है,जंगल से बडी सावधानी से गुजरें । एक अज्ञात भय के बीच शिक्षको ने अपने अपने विधालय में कार्यभार ग्रहण किया। धीरे धीरे स्कूल रोज आते जाते सभी जंगल से गुजरने के अभ्यस्त हो गये। अब इन शिक्षको को रास्ते में अक्सर जंगली जानवर भी मिलते हैं लेकिन जान जोखिम में डालकर शिक्षक अपने कर्त्तव्यपथ पर आगे बढ़ वन्य क्षेत्र के गांवों के बच्चों को शिक्षित करने के प्रति पूरी निष्ठा, लगन व मेहनत से प्रयासरत हैं। इन जंगल क्षेत्र के शिक्षको के लिए जंगल अब डर और कौतूहल का विषय नहीं रहा बल्कि अपने अपने दशको के अनुभव के आधार पर यह सभी शिक्षक बताते हैं कि जंगल क्षेत्र की कुछ खामियां हैं तो बहुत खूबियां भी हैं – सर्वप्रथम खामियां की बात करें तो जंगल के कई क्षेत्रो में नेटवर्क की समस्या है इसके अलावा यहां का पानी बहुत प्रदूषित है। यहां के पानी मे आर्सेनिक की मात्रा अत्यधिक होने के कारण व्यक्ति अनेक रोगों का शिकार हो जाता है, जैसे बाल सफेद होना,आंखों की रोशनी कम होना,पेट सम्बंधित कई बीमारियां होना जिनमे प्रमुख हैं। जो लोग बाहर से यहां रहने आते है उनके लिये यहां का पानी काफी हानीकारक साबित होता है इसलिये हम जंगल के शिक्षक चाहकर भी अपने परिवार को बीबी बच्चों को साथ नहीं रख पाते। इसके अलावा मिहीपुरवा के तहसील बन जाने के वावजूद अभी भी विकास से कोसों दूर है,मिहींपुरवा कस्बा अभी तक नगरपंचायत भी नहीं बन पाया है,तहसील होनेके बाद भी यह ग्राम पंचायत है यहां विकास की जिम्मेदारी ग्राम प्रधान के कंधों पर है यही कारण है कि इस कस्बा में सुविधाओं,संसाधनों का अभाव है और इसीलिए यहां शहरी चमक दमक ,शानोशौकत व रंगत दिखाई नहीं देती। यहां अभीतक अच्छी सड़कें नही बन पायी है। यहां अच्छे अस्पताल व अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं का आभाव है। जहां तक खूबियों का सवाल है तो यहाँ का वातावरण सुंदर प्राकृतिक है,यहां की वायु हरे भरे विशाल जंगल के कारण काफी शुद्ध और प्रदूषणरहित है जिसमे ऑक्सीजन की मात्रा अत्यधिक है।जंगल मे शेर,बाघ,तेंदुआ,जंगली हाथी,हिरन,भालू और कई अन्य जानवरों की उपस्थिति मन को उत्सुक व रोमांचित करती है।यहां के लोग बहुत ही सरल,व्यबहार कुशल व मिलनसार व ईमानदार व सहयोगी हैं।कुल मिलाकर हम जंगल के शिक्षक कई समस्याओं,कई पीड़ाओं,कई दर्दो को साथ लेकर जीते हुए अपने कर्तव्य और जिम्मेदारी के निर्वहन में ईमानदारीपूर्वक पूरी ऊर्जा के साथ लगे हुए है।अपने घर परिवार से कोसों दूर इस दुर्गम क्षेत्र में कार्यरत सभी शिक्षको की सेवाओं को प्रोत्साहन की जरूरत है, सरकार को प्रयास करना चाहिये कि इस अति पिछड़े इलाकों में कार्य करने वालों किसी भी कर्मचारी का मनोबल न टूटने पाये क्योंकि जंगल क्षेत्र में कार्यरत सभी कर्मचारी विशेष परिस्थितियों में कार्य करते हुये अपनी भूमिका निभा रहे हैं।*अंत में हम तो यही कहेंगे कि ये जंगल के शिक्षक है पर इनका दर्द न जाने कोय।*
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