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उत्तर प्रदेश के महराजगंज जनपद के नौतनवां विधानसभा क्षेत्र में वर्चस्व की महाजंग में दसकों से दो गुटों में रहा है दबदबा

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रिपोर्टर-श्यामं सुंदर पासवान महराजगंज

नवतनवा-महराजगंज।उत्तर प्रदेश के जनपद महराजगंज के नौतनवा इलाके वाली पूर्व में रही लक्ष्मीपुर विधानसभा से वीरेंद्र शाही का चुनावी मैदान में खड़े हुए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े उनका चुनाव निशान था दहाड़ता हुआ शेर. उनके सामने आए हरिशंकर तिवारी का इलाके में काम देखने वाले अमरमणि त्रिपाठी. जिनका चुनाव निशान था नाव। अमर मणि त्रिपाठी के चाचा श्यामनारायण तिवारी भी कम्युनिस्ट नेता थे और कई बार फरेंदा विधानसभा से विधायक व मंत्री रहे। 1980 चुनाव में शाही जीते. 1985 में भी यही हुआ. उधर उनके विरोधी हरिशंकर ने भी राजनीति की राह पकड़ ली. वह गोरखपुर के पास की चिल्लूपार सीट से विधायक बन गए. अब दोनों विधानसभा में आमने-सामने थे. मगर हरिशंकर को ये नागवार गुजर रहा था. वह लगातार अमरमणि को मजबूत करने में लगे थे. नतीजा पांच साल बाद दिखा. जब 1989 में कांग्रेस ढलान पर थी, तब अमरमणि लक्ष्मीपुर से विधायकी जीत गए. मगर अगले ही चुनाव में उन्होंने जीत अखिलेश सिंह के हाथों गंवा दी।वही अखिलेश जो वीरेंद्र शाही के सहयोगी थे खैर.अखिलेश उभरे और 1991 के बाद 1993 का चुनाव भी जीत गए. फिर 1996 के लोकसभा चुनाव में वह महराजगंज से सांसद भी हो गए. कुछ ही महीनों के बाद विधानसभा के चुनाव हुए. अखिलेश ने उतारा सपा के टिकट पर छोटे भाई मुन्ना को. अमरमणि फिर कांग्रेस से मैदान में आए और जीत गए. लगातार तीन चुनावों तक यही हुआ. अमरमणि कभी बसपा तो कभी निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते. और हर बार हारे मुन्ना सिंह.इस जीत-हार के बीच और भी बहुत कुछ हुआ. कांग्रेस में टूट हुई और कल्याण सिंह के समर्थन में लोकतांत्रिक कांग्रेस का धड़ा बना. अमरमणि पहली बार मंत्री बने. बस्ती के कारोबारी के बेटे राहुल मधेशिया के किडनैप में उनका नाम आया. इस इल्जाम के बाद राजनाथ ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया. फिर उन्हें मुलायम और माया की सरकार में जगह मिली. और तभी हुआ मधुमिता शुक्ला हत्याकांड. इस केस में अमरमणि और उनकी पत्नी मधुमणि को उम्रकैद की सजा हुई है. और जनता के कोर्ट में आये अमर मणि के बेटे अमनमणि। अमन मणि 2012 का विधानसभा चुनाव सपा के टिकट पर लड़े. मगर पापा के चिर प्रतिद्वंदी मुन्ना सिंह से हार गए.ये कैसे हुआ? बकौल मुन्ना सिंह, ये मुमकिन हुआ उनके असर वाले बगल की फरैंदा तहसील के 19 गांव जुड़ने से. इतने जुड़े, तो अमरमणि के असर वाले इतने ही गांव दूसरी विधानसभा में चल जाने सेबहनों ने किया विधानसभा 2017 के चुनाव में भाई का राजनीतिक बचाव टिकट कटने के बाद अमनमणि ने पैरोल पर बाहर आ निर्दलीय पर्चा भरा. चुनाव निशान मिला टैंपो. उनकी सवारी वापस जेल पहुंची. और उसके बाद उनकी दोनों छोटी बहनें चुनाव प्रचार की कमान संभाला। और अमन मणि त्रिपाठी नौतनवां विधानसभा से चुनाव जीत गए उधर 2012 में कांग्रेस के टिकट पर जीते और इस बार सपा से मैदान में मुन्ना सिंह को अलग ही भरोसा है. उनके मुताबिक सब भाजपा और अमरमणि की मिलीभगत चल रहा है.

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