कृष्णा पंडित की कलम से
देश दुनिया में धर्म के प्रति उसके अनुयायी और आस्थावान व्यक्ति अपने संस्कृति के साथ धरोहर को संजोने का कार्य करते हैं यह कोई निर्माण या विघटन की बात नहीं यह तो ऐतिहासिक जमीन पर लिखी जा रही स्वर्णिम युग की कहानी है वर्षों से बलिदान की रिवाज भारत में पुरानी है लेकिन त्याग तपस्या के साथ संपूर्ण न्यौछावर भी सनातनी की कहानी है ! 21वीं सदी का भारत बदल रहा है संपूर्णता के साथ विकास के नए आयाम स्थापित हो रहे हैं जहां चमक धमक चौक चौंद रोशनी और तकनीकी व्यवस्था का प्रावधान लोगों के लिए आकर्षण बना हुआ है वहीं दूसरी तरफ सुरक्षा और संरक्षण में भी भारत ने अन्य देशों के मुकाबले अपनी स्थिति मजबूत की है ! वर्तमान समय में धर्म के प्रति वर्तमान सरकार की जागरूकता और सनातन धर्म प्रेमियों के लिए मजबूत स्तंभ के रूप में धार्मिक स्थलों का संरक्षण व निर्माण इसका एक बेहतरीन उदाहरण है ! अयोध्या और काशी जैसे पवित्र स्थल की भव्यता लोगों के लिए ब्रह्म स्वरूप का दर्शन और सौभाग्य की बात है एक कथा के अनुसार महाराज सुदेव के पुत्र राजा दिवोदासने गंगा तट पर वाराणसी नगर बसाया था एक बार भगवान शंकर ने देखा कि पार्वती जी को अपने मायके हिमालय क्षेत्र में रहने में संकोच होता है तो उन्होंने किसी दूसरे सिद्ध क्षेत्र में रहने का विचार बनाया उन्हें काशी अति प्रिय लगी और वहां आ गए भगवान शिव के सानिध्य में रहने की इच्छा से देवता भी काशी में आकर रहने लगे राजा दिवोदास अपनी राजधानी काशी का अधिपति खो जाने से बड़े दुखी हुए उन्होंने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान मांगा देवता देवलोक में रहे भूलोक (पृथ्वी )मनुष्यों के लिए है सृष्टि कर्ता ने एवमस्तु कह दिया इसके फल स्वरुप भगवान शंकर और देवगण को काशी छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा शिवजी मंदराचल पर्वत पर चले गए परंतु काशी से उनका मोह कम नहीं हुआ महादेव को उनके लिए काशी में पुनः बसाने के उद्देश्य से 64 योगनीयों, सूर्यदेव, ब्रह्मा जी और नारायण ने बड़ा प्रयास किया गणेश जी के सहयोग से यह अभियान सफल हुआ ज्ञानोपदेश पाकर राजा दिवोदास विरक्त हो गए उन्होंने स्वयं एक शिवलिंग की स्थापना करके उसकी अर्चना की और बाद में वह विमान पर बैठकर शिव लोक चले गए और महादेव का पुनः काशी आगमन हो गया !

मोक्षदायिनी काशी महा त्रिलोक पावनी गंगा के तट पर सुशोभित व देवी देवताओं से भरी पड़ी संपूर्ण जगत में प्रथम देवस्थान व सनातन धर्म की राजधानी काशी भगवान शिव की पावन स्थली के बारे में कहा जाता है कि देवाधिदेव महादेव कभी काशी नहीं छोड़ते !
जहां त्याग तपस्या और तप वहां का बल है इसीलिए काशी सभी में प्रबल है..
यहां त्यागने माता से प्राणी को मोक्ष की प्राप्ति होती है वह अविमुक्त क्षेत्र काशी ही है सनातन धर्म यों के दृढ़ विश्वास
है की काशी में देहावसान के समय भगवान शंकर मरणोन्मुख प्राणी को तारकमन्त्र सुनाते हैं। इससे जीव को तत्वज्ञान हो जाता है और उसके सामने अपना ब्रह्मस्वरूप प्रकाशित हो जाता है। शास्त्रों का उद्घोष है-
यत्र कुत्रापिवाकाश्यांमरणेसमहेश्वर:।
जन्तोर्दक्षिणकर्णेतुमत्तारंसमुपादिशेत् !
काशी में कहीं पर भी मृत्यु के समय भगवान विश्वेश्वर (विश्वनाथजी) प्राणियों के दाहिने कान में तारक मन्त्र का उपदेश देते हैं। तारकमन्त्र सुन कर जीव भव-बन्धन से मुक्त हो जाता है ! यह मान्यता है कि केवल काशी ही सीधे मुक्ति देती है, जबकि अन्य तीर्थस्थान काशी की प्राप्ति कराके मोक्ष प्रदान करते हैं ! इस संदर्भ में काशीखण्ड में लिखा भी है !
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