साफ संदेश , संत कबीर नगर ( बखिरा ) । जीवन की एक समय अवधि है पर उसके दरम्यान किए गए कर्म की कोई काल गति नहीं हैं । जीवात्मा से उसका संबंध जन्मो – जन्म तक होता है । इस सोच के साथ जो लोग जिन्दगी जीते हैं , उनके कर्म बड़े पुनीत होते हैं । ऐसा ही एक उदाहरण स्वर्गीय चंद्र शेखर त्रिपाठी रहे हैं , जिनका जन्म बखिरा झील के किनारे स्थित जसवल भरवलिया के त्रिपाठी घराने में हुआ था । उनका जीवनकाल सेवा भाव में बीता था । उनका जीवन कल कल 80 वर्ष था । वे बचपन से सेवा कार्य में तल्लीन पाए जाते थे गौ सेवा उनके जीवन का हिस्सा था । वे उसे ईश्वरी परीक्षा के रूप में लेते थे । यही वह कारण है कि उन्हें सिर्फ अब याद ही नहीं किया जाता है बल्कि उनके जीवन काल से सीख लेते हुए जिन्दगी जीने की कोशिशे भी की जाती है । उन्हें संस्कार का उपहार जहां प्रकृति ने दिया था । वही सेवा का भाव शिक्षा ने दिया था । ज्येष्ठ पुत्र उमेश चंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि मेरे पिता कर्म सिद्धांत को प्राथमिकता देते थे । वे कहते थे मानव का जीवन बिना कर्म किये तो नहीं रहता है पर कर्म कौन सा हो रहा है उसे हमें देखना चाहिए । वहीं भतीजा वीरेंद्र मणि त्रिपाठी कहते हैं कि जीवन सीख के उदाहरण थे । यह हमारा सौभाग्य है जो ऐसे पिता के कुल में जन्म लिया । पशुधन प्रसार अधिकारी के तौर पर उनके अन्दर जो सेवा का भाव देखा गया उसे भुनाया नहीं जा सकता है । आज कल लोग तो अपने ही लोगों को भूल जा रहे हैं जीव जन्तु पशुओं के प्रति उनका व्यवहार कैसा होगा । वो रिटायरी के बाद भी अपने आप को दायित्व में बांधे रखते थे जो लोग भी अपने पशुओं की समस्या लेकर आते थे । उसे एक जिम्मेदारी के साथ निस्तारित करते थे । गरीब पशु पालकों की निः शुल्क मदद करते थे । उनका मानना था जीवन प्रेम के लिए सेवा भाव के लिए मिला है । इसे उसी में समर्पित करके जीना चाहिए ।
समर्पित करके जीना चाहिए जिन्दगी , बड़े पिता ने दी सीख



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