साफ संदेश/अमित मिश्रा
कुशीनगर ।करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान का पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह वर्ष सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियां मनाती है। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब 4:00 बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियां करवा चौथ का व्रत बड़ी श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचंद्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवा चौथ में भी संकष्टी गणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवा चौथ व्रत ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मानती हैं। लेकिन अधिकतर स्त्रियां नीराहार रहकर चंद्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करक चतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है। कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागीन) स्त्रियों अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती है। भैया भरत रखती है। यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियां आजीवन रखना चाहिए वह जीवन भर इस व्रत को कर सकती है। इस व्रत के सामान सौभाग्य दायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अत: सुहागिन स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षार्थ इससे व्रत का सतत पालन करें। भारत देश में वैसे तो चौथ माता जी के कहीं मंदिर स्थित है। लेकिन सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक ख्याति प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गांव में स्थित है। चौथ माता के नाम पर इस गांव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया। चौथ माता मंदिर की स्थापना महाराजा भीम सिंह चौहान ने की थी।
करवा चौथ व्रत की कथा
बहुत समय पहले यह बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक की पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है। और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्द्ध देकर ही खा सकती हैं। चुके चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है। इसलिए वह भूख, प्यास से व्याकुल हो उठी है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती है। और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जला कर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है। जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा है। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है । कि चांद निकल आया है। तुम उसे अर्द्ध देने के बाद भोजन कर सकती है। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है। और उसे अर्द्ध देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है। तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है। तो उसमें बाल निकल जाता है। और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है । तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है। उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए है। और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है। वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे 1 साल तक अपने पति के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उठने वाली सुईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। 1 साल बाद शेर करवा चौथ का दिन आता है। उस की सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं। तो वह प्रत्येक भाभी से यम सूई ले लो फिर सुई दे दो, मुझे भी’ अपनी जैसी सुहागिन बना दो ऐसा आग्रह करती है। लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कहकर चली जाती हैं। इस प्रकार छठवें नंबर की भाभी आती है। तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। या भाभी उसे बताती है। की चूंकी सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था। उसकी पत्नी में ही शक्ति है। कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है। इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे। उसे नहीं छोड़ना ऐसा कह के वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है। लेकिन वह टाल-मटोली करने लगती है। इसे देखकर वा उन्हें जोर से पकड़ लेती है। और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए उसे नोचती है। और खसोटती है। लेकिन खरवा नहीं छोड़ती है। अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है। और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्री गणेश-श्री गणेश कहता उठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। श्री गणेश मां गौरी जिस प्रकार करवा को चीर सुहागन का वरदान आपसे मिला है। वैसा ही सब सुहागिनों को मिले। तभी से करवा चौथ का व्रत प्रचलित है।
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